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Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
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27 OCT 2024 · बत्ती बुझाने से पहले एक बार देख लेना चाहिए। लोग कमरों में हैं या नहीं? दरवाज़े बंद हैं या नहीं? चीज़ें अपनी जगह है या नहीं? दिल धड़क रहे हैं या नहीं? आँखें बंद है, या शून्य में तक रही है। और तक रही है तो क्या ठंडी दीवारों के पार देख पा रही है?
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27 OCT 2024 · एक बारह बाय दस का कमरा कितना बड़ा हो सकता है? ये अभी हाल ही में उसे पता लगा। इस कमरे में एक बार घुसने के बाद आदमी गुम हो सकता है। वो घंटों एक जगह बैठा रह सकता है और सैंकड़ों बार जगह भी बदल सकता है।
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27 OCT 2024 · सारी उम्र जीने को कोसते रहे, किसी किस्मत नाम के कव्वे को बुलाते रहे-भगाते रहे। ऊंची पतंग भी उड़ाते रहे और कटने से भी घबराते रहे।
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21 OCT 2024 · एक दिन शायद उन्होंने भी अपने कुएं में झांक लिया था। शायद ख़ुद को ही देख लिया था। उसके बाद वे वैसी न रही। फिर हम भी उनसे वैसे न रहे।
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4 OCT 2024 · सोचने वाली बात है कि समय क्या खाता होगा? क्या समय वेजिटेरियन है या नॉन–वेजिटेरियन, या कोहली की तरह वीगन? कहीं समय परजीवी तो नहीं? या कहीं ऐसा होता हो कि हर बीतते पल को आने वाला पल निगल जाता हो और डंग बीटल की तरह वक्त लुढ़कता चला जाता हो?
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1 OCT 2024 · तुम्हारे भरोसे का आधार तो मैं ही हूं फिर मेरे भरोसे का आधार तुम क्यों नहीं हो? क्या मैंने भविष्य देख लिया है या मुझे अतीत ने ही डस लिया है?
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30 SEP 2024 · आदमी को जितना सोचना चाहिए, उससे ज़्यादा सोचने की बीमारी से वह अभिशप्त है।
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24 SEP 2024 · लड़ने से ज़्यादा न लड़ने का डर ज़्यादा बड़ा होता है। जब हम लड़ते हैं तो किसी से लड़ते हैं और जब हम लड़ना स्थगित करते हैं तो ख़ुद से लड़ते हैं। ख़ुद से लड़ने में हार ही हार है।
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17 SEP 2024 · परिचित गंध को अपरिचित शरीर में ढूंढने की जद्दोजहद
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11 SEP 2024 · मेरे लिए कभी किसी का पानी आंखों से उतर कर मट्टी में नहीं समाया। अगर समाया होता तो मैं उसे ढूंढ लेता हर उस कण में जहां उसके मिलने की उम्मीद होती और उसे बाहर खींचने में त्याग देता अपनी भी आंख का खारा पानी।
Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
Information
Author | Lokesh Gulyani |
Organization | Lokesh Gulyani |
Categories | Philosophy |
Website | - |
lokesh.gulyani@yahoo.in |
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