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Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani

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14 MAY 2025 · कहीं-कहीं किसी दीवार, खिड़की या घर को देखकर ऐसा भी लगता है, जैसे मैं यहां पहले भी आया था। इस खिड़की से मैंने भी कभी बाहर को झांका था, घाटी में आवाज़ दी थी। इस दरवाज़े से बाहर निकलते वक्त, आवारा हवा मेरे भी बालों से टकराई थी। इस दीवार पर थक कर कभी मैंने भी पीठ टिकाई थी।
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1 MAY 2025 · पूरे घर में वो एक कोना मय्यसर नहीं की मैं सुकून से बैठ कर कुछ पलों के लिए अपनी आँखें बंद कर सकूं। आँखें बंद करने पर चिंताओं की छाया डोलने लगती है, इसलिए मैं आँखें खुली रखता हूं।
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1 MAY 2025 · मुझे ठीक से याद भी नहीं कि मैंने अपने आपको कमज़ोर मानना कब शुरू किया। कब से मैंने ख़ुद के लिए खड़ा होना छोड़ दिया था।
23 MAR 2025 · उसे भूख लगी है। उसकी मां ने रख छोड़ा है, अखबारी पन्ने में लिपटा ब्रेड पकोड़ा। उस ब्रेड पकोड़े पर नज़र है, सामने वाले घर के छज्जे पर बैठे कव्वे की। कव्वे का मानना है कि यदि वो ये ब्रेड पकोड़ा खा लेगा तो बच्चे का पितृ दोष दूर हो जाएगा।
11 MAR 2025 · मैं जीवन में अर्थ ढूंढते ढूंढते थक गया हूं। अब ऐसी स्थिति आ चुकी है कि ज़िंदगी के मायने ढूंढना और मतलबी होना, एक दूजे के समानांतर लगने लगा है।
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3 MAR 2025 · मुझे काफ़ी हद तक ये बात सही लगती है कि जीवन खेद के साथ ख़त्म करने वाली यात्रा तो बिल्कुल नहीं है। अगर गौर से देखा जाए तो आनंद एक अवस्था है, जो भीतर से फूटती है। एक कस्तूरी है खुद में, जिसका हमें संभवतः ज्ञान नहीं।
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19 FEB 2025 · मुझे क्या कभी मौका मिलेगा कि मैं अपने हाथ फैला कर नीचे वादियों में कूद जाऊं और मुझे अंजाम की चिंता न हो। नीचे सूरजमुखी के फूलों से भरा मैदान हो, फूल मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे हों। बाहें फैला कर खड़े हों। और मैं उनके ऊपर से उड़ता चला जा रहा हूं, एक बड़ी चील की मानिंद।
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13 FEB 2025 · मैं समय ख़राब करता हूं, पूरे अधिकार से। मुझे लगता है कि किसी ने मेरा समय ख़रीद कर मुझे ही पकड़ा दिया है, नौकरी की शक्ल में। मालिक बार बार यकीं दिलाता है कि उसने सिर्फ़ समय खरीदा है मुझे नहीं। मैं भी खुद को यह दिलासा देता हूं कि सिर्फ़ समय बिका है, मैं नहीं।
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28 JAN 2025 · हम साथ बैठ कर देखी हुई फ़िल्म दुबारा देखते हैं। तुम्हें ठीक-ठीक पता है कि अगले कुछ क्षणों बाद प्रेमी, प्रेमिका का चुम्बन लेगा। तुम अपना हाथ, मेरे हाथ पर रखने का सायास प्रयास, अनायास करती हो। मैं पॉपकॉर्न निकालने के लिए अपनी हथेली को अनायास तुम्हारी हथेली से सायास बाहर को सरकाता हूँ। हम दोनों चौंकने का नाटक करते हैं, फ़िल्म चलती रहती है।
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9 JAN 2025 · मैं घर पर आकर अपना कोट उतार कर खूंटी पर टांग देता हूं। असल में मैं, ख़ुद ही वहां उस कोट के साथ टंग जाना चाहता हूं पर घर में मेरे लिए इतनी जगह मयस्सर नहीं है।
Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
Information
Author | Lokesh Gulyani |
Organization | Lokesh Gulyani |
Categories | Philosophy |
Website | - |
lokesh.gulyani@yahoo.in |
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